Sun. Apr 27th, 2025

जब अंग्रेज आए और यहां उन्होंने देखा तो भारत के बारे में अध्ययन किया अभ्यास किया तो उन्होंने लिखा कि भारत तो दुनिया में सबसे बड़ा व्यापार करने वाला उद्योग चलाने वाला देश है और भारत के व्यापार और उद्योग की स्थिति का बखान करना हो तो एक ही आंकड़ा आपको देता हूं अंग्रेजों ने भारत के बारे में सर्वे किए सर्वेक्षण किए और यह बताया कि दुनिया के बाजार में जो सामान बिक रहा है उसमें 33 प्र सामान सिर्फ भारत का बना हुआ है आज मैं आपको तुलना के लिए बात कह रहा हूं तो समझ में आ जाए दुनिया के बाजार में इस समय 25 प्रतिशत  सामान चीन का बिकता है दुनिया के बाजार में इस समय 25 प्रतिशत सामान लगभग अमेरिका का बिकता है अमेरिका एक देश है चीन एक देश है दोनों महा शक्तियां हैं और आज से 175 साल पहले तक दुनिया के बाजार में 33 प्र सामान अकेले भारत का बिकता था और जिस समय हमारा व्यापार दुनिया में चलता था 33 प्रतिशत  उस समय अमेरिका का माल पूरी दुनिया में 1 प्रतिशत  भी नहीं बिका करता था तो अंदाजा लगा सकते हैं उद्योग कितने बड़े रहे होंगे व्यापार कैसा होता होगा और जब उद्योग और व्यापार इतना बड़ा था कि 33 प्रतिशत  हम निर्यात करते हैं तो निर्यात तो वही

देश किया करता है जिसके पास उत्पादन अधिक होता है इसको एक सरल भाषा में मैं समझाना चाहता हूं हम हमारे घर में खीर बनाते हैं और पड़ोसी को खिलाते कब जब अपना पेट भर चुका होता है तब हमारे घरों में ऐसा नहीं होता कि पड़ोसी को खिलाने के लिए खीर बनाते हैं खीर तो अपने खाने के लिए बनाई जाती है और वह जरूरत से ज्यादा बन जाती है हमारा पेट भर जाता है तो पड़ोसी को खिलाई जाती है मतलब क्या है किसी देश का निर्यात कब होता है जब उस देश की जरूरतें पूरी हो जाए उसके बाद सामान बच जाए तब निर्यात किया जाता है इसका मतलब बहुत साफ है कि आज से 175 साल पहले तक हमारी जरूरतों का सारा सामान हम बनाते थे बनने के बाद वह बच जाता होगा तो उसको दूसरे देशों में हम निर्यात कराते थे और निर्यात 33 प्रतिशत होता था पूरे दुनिया के बाजार का इसका माने हम उत्पादन करते होंगे कुछ माल बनाते होंगे तो उपा के आंकड़े हैं भारत के अंग्रेजों के दस्तावेजों पर से आधारित कि भारत का उत्पादन पूरी दुनिया में 43 प्रतिशत  होता था पूरी दुनिया में और इस समय अमेरिका चीन और जापान तीनों को मिला दे तो तीनों का कुल उत्पादन पूरी दुनिया में 45 प्रतिशत  है माने तीन देशों के बराबर का उत्पादन भारत में आज से 175 साल पहले तक था दुनिया के विश्व के उत्पादन में 43 प्रतिशत  हम करते थे और आमदनी के स्तर के जो आंकड़े हैं भारत के 27 प्रतिशत  आमदनी सारी दुनिया की भारत के कंट्रोल में होती थी माने भारत 27 प्रतिशत  दुनिया के बाजार की आमदनी अपने पास लेता था आमनी भी हमको होती थी निर्यात भी हम करते थे उत्पादन भी होता था और उत्पादन इतनी चीजों का होता था जो दुनिया के बाजार में धड़ल्ले से बिकती थी एक दो चीजों के बारे में बताता हूं हम स्टील बेचते थे दुनिया के बाजारों में स्टील के बारे में सारी दुनिया में आज यह गलतफहमी है कि स्टील जो है ना मॉडर्न टेक्नोलॉजी और साइंस का उत्पाद है माने आधुनिक विज्ञान ने पिछले 100 साल में स्टील बनाकर दिया है लेकिन भारत के दस्तावेज बताते हैं कि भारत में तो 3000 साल से स्टील का उत्पादन होता रहा और सारी दुनिया में हम बेचते रहे वह स्टील और हमारे स्टील से जहाज बनते रहे पानी के और वह जहाज दुनिया की कंपनियां खरीदती रही और उससे व्यापार करती रही स्टील हम बेचते थे कपड़ा हम बेचते थे कपड़े का इतना अद्भुत उत्पादन इस देश में रहा है क्योंकि दुनिया की सबसे अच्छी कपास हम पैदा करते रहे और वह कपास से कपड़े बनते रहे ढाका का मलमल सूरत का मलमल खंडवा के आसपास के इलाके का मलमल मध्य प्रदेश में मालवा एक क्षेत्र कहलाता है इंदौर उज्जैन के आसपास का वहां का मलमल दुनिया में प्रीमियम प्राइस पर बिकता था माने हम जो कीमत बोल देते थे उस कीमत पर हमारा कपड़ा बिकता था और आपको सुनकर हैरानी होगी कि भारत का कपड़ा दुनिया के बाजार में जब बिकने के लिए जाता था तो उस समय तौल करर कपड़ा बिकता था आज कपड़ा मीटर से बिकता है लंबाई से बिकता है आज से लगभग 150 प साल पहले तक कपड़ा तौल से बिकता था एक किलो कपड़ा 2 किलो कपड़ा 5 किलो कपड़ा तो कहा जाता है दस्तावेजों में कि भारत का कपड़ा तराजू के एक पल्ले में रखा जाता था उतने ही वजन के बराबर का सोना दूसरे पल्ले में रखा जाता था और सोने के वजन के बराबर हमारा कपड़ा बिकता था हम कपड़ा बेचकर सोना लाते थे इस देश में और 3000 साल तक ऐसे ही बिकता रहा 3000 साल हमने कपड़ा बेचकर सोना कमाया है 3000 साल हमने लोहा बेचकर सोना कमाया 3000 साल हमने जहाज बेचे पानी के सोना कमाया 3000 साल हमने औषधियां बेची दुनिया के बाजार में और सोना कमाया क्यों क्योंकि कारण एक था उस समय सोना जो था ना विनिमय की वस्तु थी 36 तरह के उद्योगों के तो दस्तावेजी प्रमाण अब तक मिल चुके हैं कुछ और प्रमाण अगर हम ढूंढेंगे तो सैकड़ों किस्म के और उद्योगों के प्रमाण मिल जाएंगे आने वाले समय में तो यह सारे उद्योग चलाकर दुनिया भर में व्यापार करके हम सोना चांदी हीरे जवाहरात लाए 3000 साल हमने यह व्यापार किया उसमें इतना सोना चांदी हीरा जवाहरात इस देश में आ गया कि हमने सोने के मंदिर बना लिए मंदिरों में हीरे जड़वा दिए मंदिरों की दीवारों में हीरे जड़वा दिए आपने सुना है सोमनाथ का एक मंदिर सोने का मंदिर था जिसको लूटने में महमूद गजनवी को 17 साल लगे थे अब एक ही मंदिर को लूटने में किसी को 17 साल लगे तो कल्पना कर सकते हैं ना कितनी संपत्ति होगी उस मंदिर में महमूद गजनवी के समय में लिखी गई एक पुस्तक है वह पुस्तक यह बताती है कि मंदिर की दीवारों में जड़े हुए हीरों को निकालने का काम 17 साल तक वह करते रहे और तब भी जाकर पूरे हीरे नहीं निकाल पाए वह मंदिर की दीवारों से तो जिस देश के मंदिरों की दीवारों में हीरे जड़े जाएं जिस देश के मंदिरों की मूर्तियां सोने की बनाई जाएं जिस देश के मंदिरों के मंडपम सोने के हो छत्रपुर के किवाड़ सोने के हो खिड़कियां सोने की हो अंदाजा लगा सकते हैं उस देश के घर कैसे रहे होंगे अंग्रेजों के जो जो इतिहासकार रहे हैं व बताते हैं कि भारत

में जब वो घूमने के लिए आते थे तो किसी घर में खाना खाने के लिए जाते थे तो वो कहते हैं कि घरों में जाते थे तो सोने के सिक्कों का ढेर लगा मिलता था यह जो अंग्रेजों का एक बड़ा अधिकारी रहा ना टीवी में कले जिसने भारत की शिक्षा पद्धति बदली कानून पद्धति बदली न्याय पद्धति बदली वो खुद कहता है कि वो जब भी भारत के किसी व्यक्ति के घर में गया सोने के सिक्कों का उसने ढेर देखा और जब उसने पूछा कि यह सोने के सिक्के कितने हैं तो जो भारतीय व्यक्ति उसने कहा गिने नहीं है क्योंकि हमारे पास फुर्सत नहीं है गिनने की हम तो तौल करर रखते हैं सोने के सिक्के

इसलिए सारी दुनिया की नजरें भारत पर टिकी रही और इसलिए भारत के बारे में अंग्रेजों ने एक उपमा दी कि यह सोने की चिड़िया है यह सोने की चिड़िया है तो यह सोने की चिड़िया मतलब सोने से भरपूर चांदी हीरे जवारा मोती माणिक से भरपूर देश रहा ऐसा देश था अगर ऐसा देश था तो संपूर्ण स्वदेशी और स्वावलंबी ही रहा होगा उसके अलावा यह देश बन नहीं सकता ऐसा तो उसकी खोज जब हम लोग करते हैं आजकल और आगे भी करते रहेंगे तो पता चल रहा है कि इतना स्वदेशी और स्वावलंबन इस देश में रग रग में भरा हुआ था कि यह देश अद्भुत बना अब मैं मूल बात पे आ रहा हूं कि भारत

का यह जो स्वावलंबन और स्वदेशी पन था यह आया कहां से तो यह आया हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था समय से अंग्रेजों के आने के पहले तक भारत की अर्थव्यवस्था को दो हिस्सों में बांटकर अगर हम देखें तो एक थी नगरीय अर्थव्यवस्था और एक थी ग्रामीण अर्थव्यवस्था जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी वो मूल में थी और नगर की जो अर्थव्यवस्था थी वह ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित हुआ करती थी मतलब सीधे शब्दों में कहूं तो गांव हमारे संपूर्ण स्वावलंबी हुआ करते थे और नगर हमारे गांव के ऊपर निर्भर हुआ करते थे मतलब सीधा सा यह है कि गांव में

उत्पादन होता था और नगर में जाकर वह बिका करता था गांव कैसे हुआ करते थे जिन अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अध्ययन किया है और जिन अंग्रेज शासकों ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तोड़ा है दोनों के आधार पर मैं बात करता हूं आपसे कुछ अंग्रेज ऐसे आए जिन्होंने भारत की पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर दिया तोड़ दिया उनमें से एक अंग्रेज था उसका नाम था डलहौजी जिसके बारे में मैं बहुत बार कह चुका हूं ऐसे ही एक अंग्रेज था विलियम वेंटिंग जिसने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पूरा तार-तार कर दिया तो

जिन अंग्रेजों ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तोड़ा उन्होंने भारत में क्या देखा गांव में और जिन अंग्रेजों ने भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अध्ययन और अभ्यास किया इतिहासकार के रूप में उन्होंने क्या देखा भारत के गांव में तो वो मैं उनके ही शब्दों में सुनाता हूं एक अंग्रेज इतिहासकार लिख रहा है भारत के गांव के बारे में वह यह कह रहा है भारत के बहुत सारे गांव में गया अध्ययन किया और अध्ययन करने के बाद वह पहला एक वाक्य लिखता है गांव के बारे में कि भारत के गांव में बाहर से सिर्फ एक चीज आती है और वह है

नमक फिर से सुनिए अंग्रेजी में लिखा हुआ कोटेशन है उसका मैं हिंदी कर रहा हूं वो ये कह रहा है कि भारत के गांव में बाहर से बस एक ही चीज आती है व है नमक और बाकी सब चीजें गांव से बनकर शहरों में जाती हैं नगरों में जाती हैं तो नमक एक ऐसी चीज है जो भारत के गांव में आया करती थी बाहर से बाकी कोई वस्तु भारत के गांव में नहीं आया करती थी ऐसा अंग्रेजों के 200 इतिहासकार अपनी किताबों में लिख रहे हैं कुछ नहीं आता था सब भारत के गांव में होता था गेहूं चना चावल दाल मटर और एक अंग्रेज इतिहासकार ने तो बड़ी मेहनत की है

कि भारत के एक एक गांव में क्या-क्या होता था उसकी सूची बनाई है तो आप हैरान हो जाएंगे एक एक गांव में दो दो हजार से ज्यादा वस्तुएं पैदा होती थी गेहूं चना चावल दाल मटर तो यह तो उंगलियों पर गिने जाने वाले नाम है ना ऐसी 2000 से ज्यादा वस्तुएं भारत के अधिकांश गांव में पैदा हुआ करती थी और गांव कितने थे इस देश में लगभग सा 7 ख हजार के आसपास गांव थे अंग्रेजों के आने के पहले और इन गांव में उत्पादन की दो दो हजार चीजें जब हुआ करती थी उन्हीं चीजों से हमारे देश में उद्योग चला करते थे आपको यह बात तो समझ में आती ही होगी

क्योंकि आप में से कई ग्रामीण क्षेत्र के लोग होंगे कि मूल उत्पादन जो होता है जिसको आधुनिक अर्थशास्त्र में कहते हैं प्राइमरी प्रोडक्शन जिससे उद्योग चलते हैं जैसे कपास का उत्पादन मूल उत्पादन है उसको आधुनिक भाषा में हम कहते हैं प्राइमरी प्रोडक्ट कपास जैसे गेहूं का उत्पादन मूल उत्पादन है उसको कहते हैं प्राइमरी प्रोडक्ट चने का उत्पादन मूल उत्पादन है हमारे देश के गांव में मूल उत्पादन होने वाली 2000 से ज्यादा वस्तुएं थी अब उनका संशोधन और प्रोसेसिंग करके शहरों में सामान जाने के लिए तैयार होता था तो गांव में उत्पादन का बड़ा भारी

तंत्र था गांव में कपास से लेकर हर तरह की चीज पैदा होती थी गांव में कपास होती थी कपास का सूत बनता था सूत का कपड़ा बनता था कपड़ा बाजारों में बिकता था शहर के बाजारों में बिकता था यूरोप के बाजारों में बिकता था इसी तरह गांव में रेशम होती थी रेशम के उत्पादन से सूत बनता था उस सूत से रेशमी कपड़ा बनता था वो रेशमी कपड़ा दुनिया भर के बाजारों में बिका करता था तो गांव की अर्थव्यवस्था को थोड़ा हम अध्ययन करते हैं मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता संकेत में कह रहा हूं कि हर तरह की चीज गांव में पैदा होती थी याद रखना आप

2000 वस्तुएं भारत के गांव में थी जिनमें 90 खनिज और अनाज का अगर गिरना शुरू करें तो सैकड़ों किस्म के अनाज और उसके अलावा बनने वाला कपड़ा बनने वाली रस्सी बनने वाली सुतली यह सब गांव में होता था और यह सारा काम जो गांव में होता रहा इसको करने के लिए लोग कौन थे हमारे देश में कारीगर लोग हुआ करते हैं वह गांव समाज के सबसे अभिन्न अंग थे भारत की ग्रामीण अर्थ अवस्था 1 स साल पहले तक ऐसी थी कि 18 किस्म के कारीगर सभी गांव में होते थे सब गांव में लोहे का काम करने वाले लोहार सोने चांदी का काम करने वाले सुनार कपड़े को बुनने वाले बुनकर रुई आदि

कपास को सूत बनाने वाले धुकर तेल निकालने वाले तेली ऐसे बांस का और लकड़ी का काम करने वाले बढ़ई ऐसे 18 किस्म के कारीगर सब गांव में होते थे तो ऐसे कारीगरों पर आधारित किसानों पर आधारित बहुत खूबसूरत गांव की व्यवस्था इस देश में चला करती थी और एक बात बताऊं कि भारत में अंग्रेजों ने बहुत अध्ययन किया है गांव की न्याय व्यवस्था पर और गांव की चिकित्सा व्यवस्था पर तो पता चलता है कि भारत की सारी की सारी न्याय व्यवस्था ग्राम पंचायत आधारित हुआ करती थी गांव पंचायतें लगा करती थी और उनमें बड़े से बड़े फैसले हुआ करते

थे और ऐसे पंचायत लगा करती थी एक गांव की पंचायत पांच गांव की पंचायत 10 गांव की पंचायत 20 गांव की पंचायत झगड़ा जितना बड़ा पंचायत उतनी बड़ी यह मूल सिद्धांत होता था झगड़ा जितना छोटा पंचायत उतनी छोटी और गांव में यह जो सरपंच और पंचों की व्यवस्था होती थी यह पूरी न्याय व्यवस्था का ही हिस्सा होती थी और उसमें सारे झगड़े सारे फैसले हुआ करते थे और महत्व की बात ये होती थी कि उन झगड़ों और फैसलों में वादी भी संतुष्ट होता था प्रतिवादी भी संतुष्ट होता था क्योंकि न्याय करने वाला व्यक्ति निष्पक्ष होता था और वह धर्म की

कसम खाकर न्याय किया करता था तो न्याय व्यवस्था में हम स्वावलंबी थे उत्पादन में और उद्योग में हम स्वावलंबी थे और इसी तरह से गांव की चिकित्सा व्यवस्था चला करती थी लगभग इस देश के हर गांव में कम से कम एक वैद्य होता था और हर पांच गांव में एक सर्जन होता था यह 1800 60 तक की कहानी है भारत की भारत के हर गांव में एक वैद्य जो जड़ी बूटियों से चिकित्सा करे और हर पांच गांव के बीच में एक सर्जन जो जरूरत पड़ने पर सर्जरी करें और सर्जरी गंभीर से गंभीर जैसे किसी का कान कट गया जैसे किसी की नाक कट गई तो कान को जोड़ देना नाक को जोड़

देना किसी के शरीर के अंग का कोई एक बड़ा हिस्सा गल गया सड़ गया जल गया उस हिस्से को दूसरे जगह से चमड़ा उतार करर ट्रांसप्लांट कर देना जिसको आज हम राइनोप्लास्टी कहते हैं अंग्रेजों की भाषा में वह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग थी हर पांच गांव के बीच में एक सर्जन था इस देश में हड्डी जोड़ने वाले हाड़ वैद्य हुआ करते थे और वह हाड़ वैद्य तो अभी भी इस देश में दिखाई देते हैं ऐसे बेहतरीन हाड़ वैद्य मैंने देखे हैं मेरी आंखों से कि गंभीर से गंभीर टूटी हुई हड्डी को दोनों हाथ से पकड़कर एक बार जोड़ देंगे और उसके ऊपर कोई लगाकर पट्टी

बांध देंगे और 202 दिन से लेकर तीन महीने में वह पूरी हड्डी जुड़ जाएगी शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होता था जिसको गांव से बाहर चिकित्सा के लिए जाना पड़ता था और बच्चों का जन्म कराना हो तो इसके लिए तो भारत में ऐसी अद्भुत व्यवस्था रही है कि हर घर की मां गायनोकोलॉजिस्ट से कम नहीं रही इस देश में मैंने ऐसी माताओं को देखा है इस देश में दक्षिण में उत्तर में पूर्व में पश्चिम में कि बच् का जन्म इतनी आसानी से करा देती हैं कि कोई अच्छा से अच्छा गायनेकोलॉजिस्ट नहीं करा सकता उस काम स्त्री रोग विशेषज्ञ जो होते हैं ना उनको

भी तकलीफ आ जाती है ऐसी माताओं को मैंने देखा अपनी आंखों से बच्चों का प्रसव कराते हुए और सब घर में लगभग ऐसी माताएं हुआ करती थी एक घर में ना मिले तो पड़ोसी के घर में तो आराम से मिला करती थी तो बच्चों के जन्म हो या उनके दूसरे बीमारियां हो या बड़े होने पर बीमारियां हो सब तरह की की चिकित्सा व्यवस्था इस देश में थी और जिन अंग्रेजों ने भारत की चिकित्सा व्यवस्था पर अभ्यास किया जैसे एक बहुत बड़ा अंग्रेज था डॉक्टर बेंजामिन करके एक डॉक्टर लैंकर जिसने शिक्षा और चिकित्सा दोनों पर अभ्यास किया वह कहते हैं कि भारत की चिकित्सा

व्यवस्था देखकर तो हम अभिभूत है कि ऐसी सुंदर इतनी व्यवस्थित सारी चिकित्सा यहां चलती है और अंग्रेजों ने जो सबसे बड़ी विशेषता बताई भारत की चिकित्सा व्यवस्था पर वो यह कि किसी को एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ता बड़ी से बड़ी चिकित्सा कराने के लिए क्योंकि संपूर्ण चिकित्सा निशुल्क होती है इस देश में तो आप बोलेंगे फिर वैद्य का काम कैसे चलता था सर्जनों का काम कैसे चलता था उनका भी तो जीवन होता है रोजी रोटी उनकी भी होती है तो पता चलता है कि गांव के सब लोग मिलकर वैद्य जी का घर चलाते थे गांव के सब लोग मिलकर सर्जन का घर चलाते थे गांव के

सब लोग मिलकर हार बड का घर चलाते थे माने वैद्य को चिकित्सकों को अपनी उपजीविका के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती थी जो भी उनके घर आता था कुछ ना कुछ लेकर आता था तो उससे उनकी व्यवस्था चलती थी बहुत अद्भुत चिकित्सा व्यवस्था रही और उसका कारण यह था कि हजारों किस्म की जड़ी बूटियां चूंकि इस देश में गांव-गांव में होती रही इसलिए चिकित्सा व्यवस्था स्वावलंबी रही इसी तरह से शिक्षा व्यवस्था हमारी संपूर्ण स्वावलंबी थी गांव में लगभग हर गांव में एक गुरुकुल था कोई कोई गांव में तो दो गुरुकुल थे कोई कोई गांव ऐसे हैं जहां तीन

गुरुकुल थे लेकिन कम से कम एक गुरुकुल तो हर गांव में था और गुरुकुल जब मैं शब्द इस्तेमाल कर रहा हूं तो आज की तुलना में जब आप इसको समझने की कोशिश करें तो 12वीं कक्षा तक का विद्यालय इसका मतलब था अंग्रेजों के आने के पहले का गुरुकुल 12वीं कक्षा तक की शिक्षा आज जिस विद्यालय में दी जाती है जिसको हम हायर सेकेंडरी स्कूल कहते हैं वैसे इस देश में 7 लाख 32 हज से ज्यादा गुरुकुल थे अंग्रेजों के आने के पहले गांव लगभग साढ़े लाख थे और गुरुकुल 7 32000 थे माने एकाद कोई गांव को छोड़ दिया जाए तो हर गांव में गुरुकुल थे और गुरुकुल

के ऊपर उच्च शिक्षा के लिए उच्च विद्या के लिए कॉलेज स्तर के केंद्र थे जिनको आज हम डिग्री कॉलेज कहते हैं और जिनको हम यूनिवर्सिटी कहते हैं तो डिग्री कॉलेज और यूनिवर्सिटी दोनों मिलाएं तो ऐसे 14000 केंद्र थे भारत में अंग्रेजों के आने के पहले तक दक्षिण में उत्तर में पूर्व में पश्चिम में और जिसको आज हम साक्षरता की दर कहते हैं ना यह साक्षरता की दर 97 प्र थी पूरे भारत में जो आज आजादी के 60 साल के बाद 63 साल के बाद सिर्फ 50 प्र है अंग्रेजों के पहले साक्षरता 97 प्र थी अद्भुत शिक्षा व्यवस्था थी एकाद ही गांव

में कोई मिलता था जिसको पढ़ना लिखना नहीं आता हो सबको पढ़ना लिखना आता था जो अंग्रेज आए हैं इस देश में वह अपने देश से हमारी तुलना करते हैं इतिहास की किताबों में कई अंग्रेज कहते हैं कि हमारे देश में तो सबसे पहला स्कूल 18680 साल पहले से 7 32000 से ज्यादा स्कूल चल रहे हैं वोह कहते हैं हमसे ज्यादा शिक्षा में भारत ऊंचा तो शिक्षा में हम स्वावलंबी थे गुरुकुल में पढ़ाए जाने वाले विषय बहुत अद्भुत हुआ करते थे आपके मन में एक गलतफहमी यह हो सकती है कि गुरुकुल का माने खाली संस्कृत पढ़ाई जाती होगी गुरुकुल का माने खाली वेद और उपनिषद

पढ़ाए जाते होंगे गुरुकुल हमारे देश में इंजीनियरिंग के भी हुए हैं जहां सिविल इंजीनियरिंग पढ़ाई जाती थी कंस्ट्रक्शन गुरुकुल हमारे देश में एस्ट्रो फिजिक्स के हुए हैं जो आज का आधुनिकतम शास्त्र माना जाता है गुरुकुल हमारे यहां केमिस्ट्री के हुए हैं गुरुकुल हमारे यहां सर्जरी के हुए हैं गुरुकुल हमारे यहां मेडिसिन के हुए हैं गुरुकुल हमारे यहां मेटालर्जी के हुए मेटालर्जी जिसको हम धातु विज्ञान कहते हैं धातु शास्त्र कहते हैं सारी दुनिया में आधुनिकतम शास्त्रों में यह माना जाता है उसके हमारे यहां सैकड़ों गुरुकुल रहे

तो 18 से ज्यादा विषय पढ़ाए जाने वाले गुरुकुल थे और हर गुरुकुल में संस्कृत वेद और उपनिषद यह अनिवार्य था इसलिए वेद सबको मालूम था उपनिषद सबको आते थे और वेद के अलावा जो दूसरे शास्त्र हैं उनका भी ज्ञान सबको होता था उसके साथ में एस्ट्रोफिजिक्स आती थी एस्ट्रोनॉमी आती थी मेटालर्जी आती थी यह सब आधुनिकतम विद्या हमारे गुरुकुल में पढ़ाई जाती रही 175 साल तक पहले का भारत इतना अा स्वस्थ समृद्ध संपत्ति वाला गांव गांव स्वावलंबी और 175 साल में इतना गड़बड़ इतना गिर गया तो उसके गिरावट के पीछे का जो कारण है वह कारण है अंग्रेजों

के बनाए गए कानून और उनकी बनाई गई नीतियां उन कानून और नीतियों के चलते हम नीचे तक गिर गए गरीब भुखमरी बदहाली के शिकार हो गए अब आता हूं आज की बात पर कि अब हमको फिर हमारे देश के गांव स्वावलंबी बनाने हैं और नगरों को शहरों को गांव के आधार पर खड़ा करना है तो गांव स्वावलंबी हो जाए तो हमारे शहर और नगर भी स्वावलंबी हो जाएंगे और गांव और शहर स्वावलंबी हो गए तो भारत फिर से स्वावलंबी हो जाएगा हमें हमारे देश की व्यवस्थाओं को फिर से स्वावलंबी बनाना है किसी पर निर्भर नहीं होना पर निर्भरता सबसे बड़ा अभिशाप है जिसमें से सारे दुर्गुण निकलते हैं

दुनिया के सारे समाजशास्त्री एक बात कहते हैं कि जिन देशों का स्वावलंबन चला जाता है उनकी आजादी कभी भी चली जाती है और जिनकी आजादी चली जाती है उनका सब कुछ चला जाता है उनकी समृद्धि चली जाती है उनकी संपत्ति चली जाती है उनका ज्ञान चला जाता है उनका चरित्र चला जाता है उनके जिंदगी से हर चीज खत्म हो जाती है जिनकी आजादी चली जाती है और आजादी जाने का एक सबसे बड़ा कारण है परावलंबी में भारत की आजादी फिर चली जाए हम नहीं चाहते कि हम अभी भी परावलंबी होकर जिए हमने 200 250 साल अंग्रेजों का परावलंबी बनाना अपने पैरों पर खड़ा करना अब अपने

समाज को स्वावलंबी बनाना पैरों पर खड़ा करना तो यह शुरुआत गांव से ही होगी क्योंकि अभी भी हमारे देश में आजादी के बाद 6383 65 गांव हैं तो गांव को ही पहले स्वावलंबी बनाना पड़ेगा शहरों की संख्या तो 680 है और गांव 6 8365 है तो 6383 65 की तुलना में 680 तो बहुत छोटी संख्या है अगर आप निकालेंगे तो 1 प्र से भी नीचे निकलती है तो शहर तो स्वावलंबी हो ही जाएंगे क्योंकि बहुत थोड़े हैं गांव को स्वावलंबी हम बना ले यह हमें काम करना पड़ेगा अब आप बोलेंगे जी गांव स्वावलंबी हो उसके लिए क्या करना पड़ेगा तो सबसे पहला काम हमें जो करना पड़ेगा कि गांव जिन

कानूनों के चलते परावलंबी हुए हैं उन कानूनों को जड़ मूल से खत्म करना पड़ेगा और ज्यादा कठोर शब्दों में कहूं तो इन सब कानूनों को आग लगा देनी पड़ेगी जिन कानूनों ने हमारे गांव को परावलंबी [प्रशंसा] बनाया आप अगर मुझसे पूछेंगे कि गांव के परावलंबी लैंड एक्विजिशन एक्ट सबसे पहले खत्म होना चाहिए दूसरा कानून जो खत्म होना चाहिए वह इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव एक्ट तीसरा कानून खत्म होना चाहिए गांव के स्वावलंबन के लिए इंडियन पुलिस एक्ट जो अंग्रेजों के समय के आईपीसी सीआरपीसी सीपीसी और मैं बहुत दुख के साथ कहता हूं कि अंग्रेजों के समय के ऐसे

3473 कानून है जिन्होंने हमारे गांव को जकड़ रखा है पकड़ रखा है छोड़ते नहीं है वह गांव को स्वावलंबी होने के लिए तो यह सब कानून हमें खत्म करने पड़ेंगे यही भावना के साथ परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि सारा देश इकट्ठा होकर देश के स्वावलंबन को बढ़ाए स्वदेशी के मार्ग पर चलकर और हम इस काम में सफलता पाएं ऐसी ईश्वर से कामना के साथ आभार बहुत धन्यवाद: राजीव दीक्षित जी

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